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त्वं नो॑ अग्ने॒ महो॑भिः पा॒हि विश्व॑स्या॒ अरा॑तेः । उ॒त द्वि॒षो मर्त्य॑स्य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no agne mahobhiḥ pāhi viśvasyā arāteḥ | uta dviṣo martyasya ||

पद पाठ

त्वम् । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । महः॑ऽभिः । पा॒हि । विश्व॑स्याः । अरा॑तेः । उ॒त । द्वि॒षः । मर्त्य॑स्य ॥ ८.७१.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (सखायः) हे मित्रो ! (क्रतुम्) शुभकर्म की (इच्छत) इच्छा करो, अन्यथा (शरस्य) वृत्रहन्ता उस परमात्मा की (कथा+राधाम) कैसे आराधना कर सकेंगे, कैसे (उपस्तुतिम्) उसकी प्रिय स्तुति करेंगे। अतः शुभ कर्म करो। जो ईश (भोजः) सब प्रकार से सुख पहुँचानेवाला है। (सूरिः) सर्वज्ञ और (यः) जो (अह्रयः) अविनश्वर है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इसका आशय विस्पष्ट है प्रत्येक मनुष्य को शुभ कर्म करना चाहिये। यज्ञादि करने से केवल आत्मा का ही उपकार नहीं होता, किन्तु देशवासियों को भी इससे बहुत लाभ पहुँचता है और दुराचारों से बचता है, शरीर में रोग नहीं होता। मरणपर्य्यन्त सुख से जीवन बीतता है ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे सखायः=सुहृदः ! यूयं क्रतुं कर्म। अन्यथा शरस्य=दुष्टविनाशकस्य इन्द्रस्य। शॄ हिंसायाम्। कथा=कथम्। राधाम=आराधयाम। कथञ्च। तस्योपस्तुतिम्। करवाम। य इन्द्रः। भोजः=भोजयिता सुखयिता। सूरिः=सर्वज्ञः। यः+अह्रयः=अविनश्वरः ॥१३॥